कौन हो तुम
कौन हो तुम
कौन हो तुम, हो कहाँ से, क्यों पधारे ? क्या स्वयं को जानते हो ?
कौन निर्माता तुम्हारा, तुम बताओ, क्या उसे पहचानते हो ?
क्यों धरा पर चीखते रोते पधारे ? वास्तव में कौन हो तुम ?
क्या तुम्हें जबरन धकेला है किसी ने, कुछ कहो क्यों मौन हो तुम ?
राम हो रहमान हो कुछ तो बताओ, देखते हो क्या गगन में ?
दिख रही तन में तुम्हारे कसमसाहट, जल रहे जैसे अगन में॥
चुप्पियाँ क्यों साधकर सोये पड़े हो, क्या स्वयं को मानते हो ?
कौन हो तुम, हो कहाँ से, क्यों पधारे ? क्या स्वयं को जानते हो ?
याद तुमको पूर्व की क्या योनियाँ सब, कब कहाँ कैसे जने तुम ?
हँस दिये फिर रो दिये ये द्वंद कैसा, हो रहे क्यों अनमने तुम ?
राह तुमको कब कहाँ कैसे मिली थी, बात वो खुलकर बताओ।
पास मंजिल के पहुँच कैसा लगा था, राज वो खुलकर बताओ॥
पंथ में कठिनाइयाँ आती रहेंगी, रार क्यों तुम ठानते हो ?
कौन हो तुम, हो कहाँ से, क्यों पधारे ? क्या स्वयं को जानते हो ?
जाग जाने में भलाई है बहुत ही, जानते हो बात ये तुम।
आँख पर क्यों बांध काली पट्टियाँ ये, आज अंधे बन रहे तुम।
नाटकों का मंच है ये जिंदगी तो, बेवजह फिर प्रीत क्यों हो।
मौत अंतिम सत्य है यह जानते हो, फिर भला भयभीत क्यों हो।
दरबदर हो लोक से परलोक में तुम, खाक फिर क्यों छानते हो ?
कौन हो तुम, हो कहाँ से, क्यों पधारे ? क्या स्वयं को जानते हो?