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दिनेश कुशभुवनपुरी

Inspirational

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दिनेश कुशभुवनपुरी

Inspirational

गीतिका- निर्झरणी

गीतिका- निर्झरणी

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धारा कहे नदी से बहते जाना है।

पड़ा राह में पत्थर एक दिवाना है॥


आँख मूँदकर सरिता बहती राहों से।

चाह यही बस मंजिल अब तो पाना है॥


वन उपवन पर्वत कितने अवरोध मिले।

मात्र समंदर उसका मगर ठिकाना है॥


कल-कल करती राग सुनाती यही कहे।

सागर में मिलकर अस्तित्व मिटाना है॥


जहाँ जहाँ से गुजरी भू की उपजाऊ।

यही पाठ मानवता को पढ़वाना है॥


नगरी-नगरी द्वारे-द्वारे जिधर बही।

वहीं मिला जीवन का ताना-बाना है॥


आओ मिलकर करें एक संकल्प सभी।

निर्झरणी का झर-झर हमें बचाना है॥


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