बदलाव
बदलाव
बदल गया है मौसम का रूख
बदल गये सब लोग, बदल गई
भावनाएं लोगों की, जमीर पर दिखावे का जोर,
जिन्दा था इंसान , इंसान की खातिर
हो रहा कमजोर।।
मानवता दिखती है किताबों में
हकीकत दिखती है कुछ और,
बादल तो अब दिखते नहीं, घटाए हैं घनघोर,
सब कुछ स्वाहा हो गया हवन की तरह
हो रहा मानव कमजोर।
दीन दुखी डूब गए सागर में
लहरों पे है अमीरों का शोर
ढूंढ रहे हैं गरीब किनारे
माझी का रूख कहीं और
बदल गया मौसम का रूख
बदल गए सब लोग।
मुरझा गए हैं सुमन उपवन के
बरसात हो रही कहीं और
मानवता सिर्फ किताबों में सुदर्शन हकीकत कुछ और
शराफत का मूल्य नहीं है
खुश हैं चक्के चोर।
बदल गए त्यौहारों के रूख
मेले महफिलें गए सब छोड़
कम हो रहा है भाईचारा, झूठों का है दौर ।
समझ रहा है मानव
अपने आप को भगवान कर रहा ठगी जोरों से खो बैठा है
ईमान,
कहां रहा यकीन किसी पर अपना हो या मेहमान,
समझ रहे हैं इसी में है मस्ती हमारी इसी में है मौज,
बदल गया मौसम का रूख बदल गए सब लोक।
