बिखराव
बिखराव
यार की आँखों में जब कभी नमी देखी,
हमने अपने आप में ही कोई कमी देखी।
दिखता रहा उदास चेहरा दोस्त का, मानो चेहरे पे धूल जमी देखी।
नहीं रहा भरोसा हर किसी पर, हरेक के ऐतबार में कोई न कोई कमी देखी।
साथ जीने, साथ मरने की कसमें खाते हैं सब, बदलती दूनिया दारी में हमसफ़र की रफ्तार भी थमी देखी।
भीड़ तो लोगों की देखी बहुत लेकिन महफ़िल न कहीं जमी देखी।
बिखर चुके हैं घर परिवार, भाई भाई में तनो तनी देखी।
कहने में तो खून के नाते हैं मगर, हास्पिटल में, अपनों के खून की कमी देखी।
अमीरों के साथी देखे बहुत, गरीबों के शमशान में कभी न भीड़ जमी देखी।
चलते फिरते के सभी साथी हैं सुदर्शन, बूढ़ों, बुजुर्गों, असहायों के सहारों में हर पल कमी देखी।
अमीर, गरीब का अन्त एक जैसा देखा, फिर क्यों जीते जी, आपसी मेल की कमी देखी।