गजल (शरारत)
गजल (शरारत)
जुल्म ढाना उनकी आदत हो गई, सहते सहते मुस्कराना हमारी हिमायत हो गई।
सर उठा कर जब करें बात अपनों से, समझते हैं हमारी बगावत हो गई।
बात इंसानियत की भी करें तो कहते हैं हैवानियत हो गई।
उनका इकरार था, मुहब्बत का हमसे,
लगता है, उनको हमसे शिकायत हो गई।
पूछते हैं हर रोज मिज़ाज वो मेरा, लगता है उनको मेरे से कोई बगावत हो गई।
हमने तो हाथ दोस्ती का बढ़ाया था उम्र भर के लिए, लगता है दोस्त से कोई शरारत हो गई।
रखा है, हर पल दिल को पाक सुदर्शन, न जाने क्यों उनके दिल में जलालत हो गई।
रख दोस्ती उस रब से सुदर्शन, जिससे हर किसी की हिफाज़त
हो गई।