शराफत
शराफत
चुपचाप डगर अपने पे मैं चलता रहा,
ज्यों ही सफर जिंदगी का कटता रहा।
कदम, कदम पर कोई न कोई मुझे छलता रहा,
पर मैं अपनी शराफत पर चलता रहा।
दुआ माँ की मिलती रही हर पल, उसी सहारे से मैं
सदा फलता रहा।
दूर की मंजिल भी पास होती गई,
नहीं था जो किस्मत में बस टलता रहा।
हर सुबह दिखता उजाला मुझे, शाम आते ही वोही
उजाला ढलता रहा।
न आस छोड़ी, न विश्वास तोड़ा,
नाम प्रभु का हर पल जपता रहा।
परवाह न कि किसी के कहने की,
निगाह मंजिल पर रख कर आगे बढ़ता रहा।
मेहनत अपना रंग दिखाती गई,
मैं कदम पे कदम बढाता रहा।
सच्चाई, ईमानदारी का रास्ता था लम्वा सुदर्शन,
बिन रूके शराफत से कटता रहा।
नहीं टिकती माँ की दुआओं के आगे किसी की बेवजह बद्दुआएं,
मैं यही तमन्ना मन में रखता रहा।
मिल गया रास्ते में अवला,असहाय जो
मदद उसकी में करता रहा।
है, उनकी दुआओं का असर या, भगवान का
आशीर्वाद मुझपर, अपना कर्तव्य फर्ज से करता रहा।
रख, सच्चाई, ईमानदारी, शराफत हर पल हर कर्म
पर, सफर जिंदगी का नेक दुआओं से युहीं कटता रहा।

