मन का चिक्कन आँगन
मन का चिक्कन आँगन
आर्योँ की इस धरती पर,
अब आए ना कोई दुशमन !
ना हो किसी पतित पावनी का,
अब कभी कोई चीरहरण !
काम-क्रोध,मद-माया का ,
करना होगा सबको दहन !
नफरतों की अग्नि में न जले,
अब किसी इंसान का मन !
मुश्किलों से जूझने का रखें ,
खुद मेंअसीम धैर्य व पराक्रम !
बुजुर्गों के हर श्रेष्ठ वचनों का,
करना होगा सबको पालन !
संस्कारो से अति परिपूर्ण हो ,
सबके मन का चिक्कन आँगन !
सदाचार, सद्भाव का ना छोड़ो ,
कोई भी इंसान कभी दामन !
*चिक्कन =साफ सुथरा, पवित्र