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Manju Saini

Inspirational

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Manju Saini

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हरियाली तीज

हरियाली तीज

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ऋतुएँ यूँ ही धीरे धीरे अपना रूप

बदलती रहती हैं

ऋतुओं के पन्ने हम अलट पलट कर

देखते रहते हैं


वो अपने वायदे के अनुसार ही 

आती जाती हैं

और हम उधेड़ बुन में लगे हैं कि मौसम बदला

अब नये रूप में

जाने से क्या होगा मौसम के वह फिर आएगा

अपने समय से


पर मेरे मन का सावन तो कभी लौटेगा ही नही

माँ जो नहीं रही

स्नेह व अपनेपन से देती थी हरी साड़ी,बिंदियाँ, चूड़ी

अब सब सूना

कहाँ हरियाली तीज आज मेरी हरी


कुछ भी तो हरा नहीं

बस हरा हैं तो माँ की यादों का वो दर्द

जो यादों में अब

शायद माँ यही सोच खुश होगी देवलोक में कि

हरा होगा आज भी


मेरी प्यारी बिटिया का सावन, हरी चूड़ियों संग

बिन कोथली, बिन सिंधारा।


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