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Smita Singh

Inspirational

4  

Smita Singh

Inspirational

फिर से

फिर से

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फिर से चली वो यादों कि पुरवाई,

फिर से मन मे उमंगो ने ली अंगड़ाई,


फिर से मुझे मेरा अक्स नजर आया है,

फिर से खिलखिलाती हूँ, किसी नदी कि तरह,


फिर से ख्वाहिशों के पंखो ने सर उठाया है,

फिर से कोरे कागज पर उकेरती हूं लफ्जों को,


फिर से वो अल्हड़ यौवन की स्वछंदता ने जगाया है,

फिर से लेखनी के पंख लगाकर उड़ने लगी हूं,


फिर से जैसे जिंदगी की ओर मुड़ने लगी हूं।


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