जरूरी तो नहीं
जरूरी तो नहीं
कुछ कहांनियां यू ही लिखती हूं तुझ पर ऐ जिंदगी!
हर कहानीं को कलम की जरूरत हो,ये जरूरी तो नहीं,
कुछ कवितायें यूं ही पढ लेती हूं, खामोशी से मन के कोनों में,
हर कविता तुम्हें सुनायी दे,ये जरूरी तो नहीं।
समेटती हूं भावनाओं का ज्वार भाटा, मर्यादित होकर
संगदिलों की जमीं से टकराकर ,
हर बार लहरों सी बिखर जाऊं ये जरूरी तो नहीं,
तुम्हारी नजरें ढूंढती है ऐब बहुत मेरे किरदार में,
हर बार तुम्हारे नजरिये को जायज ठहराऊँ ये जरूरी तो नहीं।
खुशियां ढूंढ लेती हूं , जमीं पर बहुत,
हर बार आसमां के चांद पर दांव लगाऊं ,जरूरी तो नहीं
रौनक मेरे चेहरे की भाती होगी तुमको शायद बहुत,
इसे हर बार तुम पर ही लुटाऊं ये जरूरी तो नहीं।
प्यार के सदके में झुकता है सर मेरा लेकिन,
तुम्हारी हर बात पर सर झुकाऊं ये जरूरी तो नहीं,
तुम कहते हो मगरूर मुझे, कहते रहो,
तुम्हारे कहने की फिक्र में खुद का गुरूर भी भूल जाऊं, ये जरूरी तो नहीं।