सुन जिंदगी!
सुन जिंदगी!
सुन जिंदगी ! तेरी ठिठोलियां मुझे अक्सर उदास कर जाती है।
अहसासों की कश्मकश देेकर मुझे,नाहक कोफ्त से भर जाती है,
कभी मुस्कुराहट देकर मुझे,खिलखिलाहट से बेजार कर जाती है।
संघर्षों की रूबाईयां हर्फ दर हर्फ,जिंदगी में बेसुरा राग भर जाती है,
गम और खुशी का मौसम बनकर ,आंखो में मुख्तसर सावन भर जाती है।
चांद सी रौशन राते कभी,कभी अमावस सा दिन कर जाती है,
सूरज सी तपन में झुलसाना कभी,कभी शरद सा शीतल कर जाती है।
कभी अपनी ठोकरों से बिखेरकर मुझे, निखरती रंगोली कर जाती है,
सुन जिंदगी ! तेरी ठिठोलियां मुझे,अक्सर उदास कर जाती है।