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Smita Singh

Classics

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Smita Singh

Classics

नियती को,आवाज दे!

नियती को,आवाज दे!

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अभी जलजला आया है, सैलाब का आना बाकी है,

अभी जमीं मापी है ख्वाहिशों की, आसमान मापना बाकी है,


संघर्षौ की तपती धूप को, हौसलों की आग दिखाना बाकी है,

 स्वअस्तित्व की ताकत में, जुनून का सामर्थ्य मिलाना बाकी है,


धैर्य,विश्वास, की दौलत को, वक्त के थपेड़ो पर लुटाना बाकी है,

जिन्होंने सेंध लगायी वक्त बेवक्त,बढते कदमों के निशानियों पर


उनके अनर्गल प्रयासो को, मौन का आवेश दिखाना बाकी है 

हताश होता हूं जब कभी, स्वयं के कर्मो के परिणामों से तो,


सहसा आत्मा के तारों को झकझोर देता है,परमात्मा का स्पर्श कही,

"उठ,खड़ा हो, नियती को,आवाज दे अपनी,अर्जुन है तू अपने रण का,


 सारथी हूं मैं तेरे प्रयासों के रथ का, जिसकी मंजिलें अभी और बाकी है।


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