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Smita Singh

Inspirational

4  

Smita Singh

Inspirational

नारी एक उत्सव

नारी एक उत्सव

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अंजाना सा मन क्यों बांध रखा है,

देखो सखी बाहर कौन खड़ा है?

बसंती बयार तुम्हारी मुस्कान के इंतजार में है,

फाग के रंग सा खिलता जीवन,तुम्हारे सिंगार में है,

तुम्हारे पायल की झनकार,बुदबुदाता संगीत विश्वास का,

तुम्हारी खिलखिलाती हंसी में राग ,हर ऋतु के सृजन की श्वास का,

तुम्हारे बालों में घटायें सिमटी है ,सावन की,

तुम्हारे चेहरे की चांदनी में,छटा पूनम के चांद की,

इतना कुछ समेटकर खुद में,बैठो ना तुम यूं अकेली,

नारी हो तुम,स्वयं में उत्सव,ना बैठो यूं बनकर अबूझ पहेली।



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