प्रतीक्षा
प्रतीक्षा
तिनका तिनका बन कर मैं तो पथ में बिछ जाऊँगी
तेरे आने का जो संदेसा कहीं से भी पाऊँगी
आम पे बौर भी फिर से फूटे तरुवर मुस्काते हैं
नन्ही पौध पर रंगबिरंगे फूल खिले जाते हैं
कोयल भी फिर गाने लगी मैं साथ उसके गाऊँगी
तेरे आने का जो संदेसा कहीं से भी पाऊँगी
फागुन है होली का महीना सखियाँ खेलें जी भर
उनके साथ में उनका पिया करे हँसी ठिठोली दिनभर
तुम भी बाँह पकड़ लो आकर मैं भी मुस्काऊँगी
तेरे आने का जो संदेसा कहीं से भी पाऊँगी
जानती हूँ तेरी जिम्मेदारी देश के लिये है ज्यादा
तुमको मैंने बाँट लिया है देश के संग में आधा
देश के हित में तुमको मैं कभी रोक नहीं पाऊँगी
पर तेरे आने का जो संदेश कहीं से भी पाऊँगी
तो मैं भी मुस्काऊँगी, हाँ मैं भी मुस्काऊँगी।