बहुत आगे जाना है
बहुत आगे जाना है
ये जो पहिया है वक्त का,कभी पीछे नहीं मुड़ता,
सिर्फ आगे ही आगे जाता है
और इक दिन मुठ्ठी में बंद रेत की मानिंद फिसलता चला जाता है
छोड़ जाता है पीछे एक काश....और एक अगर....
आज जो बैठी लेखाजोखा गुजरे वर्ष का करने
कुछ सहमे हुए पल किसी खिड़की से लगे झाँकने
कुछ चीखें भी पड़ी सुनाईं,थोड़ी बेबसी भी बाहर आई
फिर किसी कोने में उम्मीद की किरण भी झिलमिलाई
मैं दौड़ी उस तरफ,उम्मीद को बाँहों में भर लिया
उसने भी मुझे हौले से थपथपाया,गले लगाया और बढ़ने लगी एक ओर
मैं भी दौड़ी पीछे,पूछा जाती हो कहाँ
उसने कहा तू भी साथ चल मेरे ,बड़ी दूर मुझको जाना है
गमों का कुहासा हटाना है, हर्ष की रोशनी फैलाना है
मैं मुस्कराई और साथ हो ली,इस नववर्ष में जलेगी दुखों की होली
अब न होंगे किसी आँख में आँसू,गम का कुहासा भी छँटेगा
खुशियों के रंग बिखरेंगे हर ओर,आशाओं का अबीर गुलाल उड़ेगा
सोई हुई मानवता को फिर से जगाना है।
इस वर्ष बहुत आगे जाना है