ये सर्दी की बारिश
ये सर्दी की बारिश
तेज बौछार से द्वार खड़काती
बंद खिड़की पे कोई नगाड़ा सा बजाती
ठिठुरते हुए तन को और ठिठुरा रही थी
ये सर्दी की बारिश हर झिरी से भीतर आ रही थी
मेघों ने भी उत्पात मचाया था
घनन घनन का शोर मचाया था
चीर मेघों का सीना दामिनी इठला रही थी
ये सर्दी की बारिश बहुत डरा रही थी
न जाने क्यों रूठी हुई आज सृष्टि
हरी दूब पर जब से हुई ओलावृष्टि
बरफ की सफेद चादर बिछी जा रही थी
ये सर्दी की बारिश कितना सता रही थी
अच्छा नहीं है बरसते ही जाना
कहीं पड़ न जाए अंततः पछताना
अभी जोश में जो सितम ढा रही थी
मैं सर्दी की बारिश को समझा रही थी
अहा उसने सुन ली फिर वो थमी भी
बरफ भी वह पिघली थी जो थी जमी सी
गुनगुनी धूप फिर से खिली जा रही थी
ये सर्दी की बारिश लो घर जा रही थी।