मुस्कुराना ज़रूरी है
मुस्कुराना ज़रूरी है
ज़िंदगी इक पहेली जैसी, सुख दुख इसके नातेदार
सुखों से हो यदि गहरा रिश्ता दुखों से भी करना है प्यार
जब भी कभी जीवन आकाश में दुख के बादल घिर आते
खुद को फिर असहाय समझकर टूटते हम और बिखर जाते
साँझ बिना सूर्योदय की परिकल्पना भी तो अधूरी है
मुस्कुरा ले खुल कर प्यारे, मुस्कुराना ज़रूरी है
खिले वसंत ऋतु जब भी सदा ये प्रकृति सारी मुस्काती है
हर दिन ही इक नई भोर मुस्काती चली आती है
शिशु की इक मुस्कान पे माता बलिहारी हुई जाती है
गगन में मुस्काता है चंदा चाँदनी फिर इठलाती है
तूने ही मुस्कान से प्यारे बनाई कैसी दूरी है
मुस्कुरा ले खुल कर प्यारे मुस्कुराना ज़रूरी है।
