प्रभु से मिलन कराएंगे
प्रभु से मिलन कराएंगे


बना हुआ है सबके मन में अपना ही एक संसार
उतना ही ये फैलता जितने आते रहते हैं विचार
मन में अनेक विचार उपजते कोई क्या कर पाए
चौराहे पर खड़ा करके हमें चारों तरफ भटकाए
इच्छा, कामना, अभिलाषा और वासनाएं अनेक
शान्त कोई ना रहती सब हैं एक से बढ़कर एक
जन्म जन्म खींचा हमें हर विचार ने अपनी ओर
अपनी ही सत्य पहचान भूले सुनकर इनका शोर
लगा है मेला विचारों का फिर भी मेल नहीं खाते
एक दूजे को काटकर भी हर पल बढ़ते ही जाते
होता नहीं इनसे किनारा आते रहते इतने विचार
विचारों भरी इस दुनिया का होता जाता विस्तार
विचारों का ये मायाजाल निरन्तर उलझता जाए
इस उलझन से आखिर कैसे खुद को हम बचाएं
गीता ज्ञान में सिखलाई गई शिक्षा को अपनाओ
माया रूपी मकड़ जाल से सम्पूर्ण सुरक्षा पाओ
सर्व प्रथम मूर्छित पड़ी अपनी बुद्धि को जगाओ
संकल्पों की भीड़भाड़ से खुद को किनारे लाओ
निष्पक्ष और तटस्थ बनकर साक्षी भाव जगाओ
आने वाले प्रत्येक विचार से किनारे होते जाओ
सहयोग हमसे पाकर ही हर विचार जीवन पाता
स्वच्छन्द होकर वो हमारे अन्दर उत्पात मचाता
व्यर्थ विचारों को ना बनाओ तुम अपना मेहमान
पराया समझकर खूब करो इनका तुम अपमान
पालना ना मिलने पर हरेक विचार लौट जाएगा
व्यर्थ विचारों का साम्राज्य पूरा ध्वस्त हो जाएगा
मन के अन्दर तब केवल शुद्ध विचार रह जाएंगे
यही शुद्ध विचार तुम्हारा प्रभु से मिलन कराएंगे।