लिखावटों का ये दौर।
लिखावटों का ये दौर।
लिखावटों के दौर में यूं शब्दों का ही ये शोर है,
दिल के भीतर झांकिये तो खामोशियाँ घनघोर है,
यूं तो हर बात है यूं सीधी, समझने का ही बस मोल है,
कुछ ना कहना कुछ ना सुनना वक़्त का ही ये शोर है,
शब्दों से जो बयान होते वो कही अल्फ़ाज़ है,
बिन कहे समझने वाले दिल के ये जज़्बात है,
खाली पतों सा जड़ा ये समय का ही एक दौर है,
लिखावटों के दौर में यूं शब्दों का ही ये शोर है ।
खुशियाँ यूं तो है हजारों बस ना मिल पाए
उसका ही तो मोह है,
जूझते हुए उलझे रिश्तों के धागे कहीं और है,
अपनों से दूर गेरो में ढूँढ़ते प्यार यूं कमजोर है,
इतनी सी बस बात है की बातों का ही तोल मोल है,
रंजिशों में भी सुलझते रिश्तों की जड़ो का ये जोर है,
लिखावटों के दौर में यूं शब्दों का ही ये शोर है ।
बनावटों की नगर में ये इंसाफ का यूं शोर है,
सत्य और निष्ठा ही इसमें यूं तो समतोल है,
ना झुकना, ना ठहरना परिश्रम ही अनमोल है,
मंजिलों से भी मजबूत इस राह का ये तोड़ है
लिखावटों के दौर में यूं शब्दों का ही ये शोर है ।
सीधी सी बात इतनी हर लफ्ज का यहां जोलमोल है,
पर बात करना क्योंकि, लिखावटों के दौर में
यूं शब्दों का ही ये शोर है ।