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Sweta Parekh

Classics

4.9  

Sweta Parekh

Classics

माँ तुझ जैसी में बनना चाहूँ

माँ तुझ जैसी में बनना चाहूँ

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माँ तुझ जैसी में बनना चाहूँ,

तेरी परछाई खुद में बसाना चाहूँ। 

 माँ तुझसा ना कोई,

लिखी गयी गाथा ये इसपे,

पर फिर भी कम लिखा गया तुझपे । 

 

प्यार और ममता का ये संगम,

दिखे जिसमे जीवन का हर रंग,

बनना चाहूँ वही दर्पण। 

 

जितनी सरल और सहज,

उतनी ही दृढ और अचल,

बेटी को बेटे समान पाला,

स्वनिर्भर का पाठ पढ़ाया,


जीवन का मतलब समझाया,

हर परीक्षा की दी जो शिक्षा,

खुद पर विश्वास जगाया,

स्वाभिमान के साथ जीना सीखा कर

स्त्री शक्ति से रुबरु कराया। 

 

दुनिया से करायी पहेचान तुमने,

पर मेरी तो पहेचान ही तुमसे,

पूछे अगर कोई बेटी हो किसकी,

शान से देती पहेचान तुम्हारी,

जस्बातो के साथ जस्बो से भरे जीवन की,


सीता से लेके द्रोपदी तक की सीख जो तुमने बतायी,

जीवन जीने की ये रीत जो तुमने सिखायी,

गीर कर उठने की तालीम तुमसे है पायी,

उसी के सहारे आज ये ज़िंदगी समज आयी। 

तुम्हारे विश्वास ने पंखो सी उडान दी,

उस खुली सोच और खुले हाथों ने

आगे की कई राह दिखा दी। 

 

माँ तुझ जैसी में बनना चाहूँ,

तेरी परछाई खुद में बसाना चाहूँ। 


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