STORYMIRROR

Sweta Parekh

Abstract

4.0  

Sweta Parekh

Abstract

बेटी हूँ मैं उनकी

बेटी हूँ मैं उनकी

1 min
172



अपने पापा की धड़कन और माँ की परछाई हूँ मैं!

घर मे गूंजते आवाज की किलकारी हूँ मैं!


माँ कहती घर की लक्मी हूँ मैं,

पापा कहेते धुप मे खिलती छाव हूँ मैं,

सायद उनके प्राथाना का प्रसाद हूँ मैं,

बेटी हूँ मैं उनकी!


मेरी एक मुस्कान उनका दिन खिलाती तो,

एक आँसू से मायूसी छा जाती,

नाज़ो मे पली ओर उनसे बनती सारी ख्वाइशें पूरी होती,


पढाई के नाम पर उनके हौसले ने प्रेरणा दी,

उनका गर्व बन ने की आश ने पंखो सी उड़ान दी,

अपने क्षेत्र मे मुकान बनाने मे उनके पैरो ने कई परीक्षाएं दी,

बेटी हूँ मैं उनकी!


बेटे से कोई तुलना नहीं पर अपनी अलग ही छाव लाऊँ,

माँ के सपनो की उड़ान ओर पापा का सुकून बन जाऊँ,

एक नहीं दो परिवार को उजागर अपने प्यार से मे करना चाहु!

बेटी हूँ मैं उनकी!


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract