⚘ओस की बूंद।÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷
⚘ओस की बूंद।÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷
कोमल रंगीन पंखुड़ियों पर सजे पुष्प के
ओस की बूद आभा अद्भूत बिखेरती हैं
क्या हैं यह जीव और बिखरा धरा पर सब जीवन
उसकी तो छवि सहजता से उकेरती हैैं।
इक लड़ी श्वेत मोतियों की दुर्वा के
तन पर बूंद ओस की बिछी सी दिखती हैं
इसी उपलब्ध पटल पर वे सब
हर शख्स, संबंंध, सूक्ष्म संयोजन की
गाथा भी लिखती हैं।।
इन बूूंदों की गजब चमक संकेत नवजीवन के
पल पल हर पल गुुन गुन करती है
आगे कङी धूप मेें सूरज की फिर तो
तप तप कर लुप्त ये सब हो लेती हैैं।।
इक नेमत यह मिला है जो जीवन है
लुप्त होने से पहले तप जीवन धूप में
परिवेश अपना निखार ले जीव तुुम
संदेश दे यही ओस की बूूंद होती है
वादा कर अगले दिन फिर आने की
सजीली प्रकृति मेें अपने हीं गुम।।
