STORYMIRROR

ritesh deo

Abstract

4  

ritesh deo

Abstract

मेरे हर शबद

मेरे हर शबद

1 min
311

अपने कहे हर शब्द के लिए, मैं आइना बन जाउंगा

किसी को छोटा कहकर, क्या मैं बड़ा बन जाउंगा

तुम गिराने में लगे रहो मुझे , पर मैं बचता रहूँगा

यदि गिर भी गया तो,एक समाधान बनकर खड़ा हो जाउंगा

मुझको चलने दो अकेला,अभी बाकी है मेरी मंजिल

रास्ता रोका गर तुमने,तो मैं काफिला बन जाउंगा

हैं परिचित सभी मेरी, निष्ठा और पारिदार्शिता से

एक आपके कहने से, क्या मैं अपारदर्शी हो जाउंगा

कितने जाल बिछाओगे,बेबुनियाद इलज़ामात के

एक आपके कहने से,क्या मैं गुनहगार हो जाउंगा

यदि नीयत साफ़ थी, और साफ़ है मेरी

तो मैं खुदा की अदालत से,यक़ीनन बरी हो जाउंगा

अपने कहे हर शब्द के लिए, मैं आइना बन जाउंगा।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract