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Sudhir Srivastava

Abstract

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Sudhir Srivastava

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खुद को नहीं बचा पाते

खुद को नहीं बचा पाते

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भूल से नहीं अपनी मूर्खता से

हम खुद को नहीं बचा पाए,

क्योंकि हम आज की 

आम राजनीति जो नहीं समझ पाए।

घर परिवार और आम लोगों की पीड़ा

हम जो नहीं देख पाए

और बेवजह हर जगह अपना सिर घुसाए

लात घूँसे गालियां खाए,

औरों के कष्ट मिटाकर खुद कष्ट उठाए

नेकी करके भी बदनामी ही पाए

बस खुद को नहीं बचा पाए।

हर ओर स्वार्थ का बोल बाला है

ईमानदार सज्जन व्यक्ति का मुंह काला है

जिसके द्वार एक भी दुधारू पशु नहीं

वही सबसे बड़ा ग्वाला है

गरीब के मुंह से छिनता निवाला है

आज की सबसे बड़ी यही पाठशाला है।

बेवकूफ हैं वे जो खुद को नहीं बचाते हैं

दूसरों के फटे में टांग अड़ाते रहते हैं

वे ही खुद को नहीं बचा पाते

फिर बाद में पछताते हैं। 



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