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Asst. Pro. Nishant Kumar Saxena

Abstract

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Asst. Pro. Nishant Kumar Saxena

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लोग

लोग

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लोग!

खामोश हो गए हैं

अपनी जिम्मेदारी नेताओं पर डालकर।

लोग!

आत्म समर्पण कर चुके हैं 

परिथितियों के आगे

लोग!

स्वीकार कर रहे हैं

उसी गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी और अशिक्षा को

जो सब उनके पूर्वजों ने सही

और आगे उनकी पीढ़ियां सहने बाली हैं।

लोग!

डूब गए हैं

स्वार्थ, ईर्ष्या, द्वेष और नकल में

लोग!

दौड़ रहे हैं आंखें मूंद कर गहरे कुएं की ओर

चिल्लाकर तेज "हमें मत रोको"

लोग!

मूर्ख बन रहे हैं अध्यात्म, धर्म और भगवान के नाम पर

ये सब उनके लिए है कर्तव्य से बचकर

सब भगवान पर छोड़ देने का साधन।

लोग!

खत्म हो रहे हैं

शारीरिक रूप से नहीं

आत्मिक रूप से।


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