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Asst. Pro. Nishant Kumar Saxena

Abstract Others

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Asst. Pro. Nishant Kumar Saxena

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भगवान की देन

भगवान की देन

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रे मूर्ख मानव! 

तुम्हें एक या दो 

मानवता और प्रकृति कल्याण को समर्पित संतान उत्पन्न करनी थीं 

किंतु तुमने 

बिना अच्छे उद्देश्य और लक्ष्य के 

निरर्थक करोड़ों जानवरों की उत्पत्ति कर डाली।


मानव की आवश्यकता 

उत्पाद की नहीं विनाश की जननी है 

क्योंकि मानव की भोगी आवश्यकताओं का 

कोई अंत नहीं।


अधिकांश बुद्धिहीन 

ज्यादा संतानों में वर्चस्व मानने वाले, 

पुत्र प्राप्ति की लालसा वाले, 

दुनिया में अपना ही धर्म फैलाने के संकल्प वाले 

और आसमानी किताबों पर अंध भक्ति वाले मूर्खों ने 

पूरी दुनिया में आबादी को 

आठ सौ करोड़ के पार पहुंचा दिया।


क्या धरती सिर्फ तुम्हारे लिए दी गई थी? 

जंगल, तालाब, नदी, 

खेत, बगीचे, पेड़ पौधे, 

औषधि, पशु पक्षी, घोसले, 

गौरैया, गिद्ध, तितली, 

मधुमक्खी, भौंरे, 

ये जमीन सबके लिए थी। 


आबादी बढ़ा बढ़ा कर 

नीच और मूर्ख मानव ने 

नदी, पहाड़ और सागर को भी नहीं छोड़ा। 

डोडो जैसे कई जीव खा लिए। 

वायुमंडल जहरीला कर दिया। 

जंगल, बाग बगीचे काट डाले। 

कई जंतु विलुप्त कर दिए।


विश्व की कुल भूमि का 

मरुस्थल, खेत, नदी, 

झील, जलाशय, घास के मैदान, 

बगीचे, पर्वत, पठार निकालकर 

महज पांच प्रतिशत भूमि 

मानव निवास के लिए 

आदर्श मानक हो। 


प्रकृति का संतुलन बना दो

अन्यथा प्रकृति अपना संतुलन

स्वयं बनाएगी

तो बड़ा दर्द होगा तुम्हें

तब ना ज्यादा बच्चे बचाएंगे, 

ना वर्चस्व जाएगा, 

ना धर्म 

और ना आसमानी किताबें।


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