परमात्मा का साक्षात्कार
परमात्मा का साक्षात्कार
हे सच्चिदानंद
कथा साहित्य से अधिक
मैंने अनुभूति से जाना तुम्हें
किंतु अभी उर के किसी कोने में
कहीं अंधकार है
अभी तुम्हारे परम साक्षात्कार की आस है
अधूरे प्रश्नों की लंबी कतार है।
हे अनंत तुम्हें और निकट से जानना चाहता हूं
पार्थ की भांति दिव्य दृष्टि पाना चाहता हूं
ताकि समस्त भ्रम भ्रांति का नाश हो
बुद्धिजीविता कोई अपराध नहीं
बस अज्ञान का पूर्ण विनाश हो।
प्रत्यक्ष आओ समक्ष आओ
अब आमने सामने मिलते हैं
संकेत और संदेश बहुत हुए
मेरी ये विनती कोई पाप तो नहीं
तुम्हारे नाम पर फैल रहे हैं
व्यापार और असत्य
मूर्ख बनाने के उद्योग बंद हों दयाल
सिर्फ बचे तो केवल सत्य।
सुनी सुनाई कही बातें सत्य हैं या झूठ
किसे पता
जब सम्मुख आकर अनंत सत्य दिखलाओ
तब बात हो।
