शब्द प्रणाम
शब्द प्रणाम
हे पूर्ण प्रभु सच्चिदानंद
मैं दर्शन की कामना, तू चित्त का आनंद।
सौ युद्ध लड़े
नब्बे बार पराजित हुआ
दस बार जीता
किंतु वास्तव में हार वह सीखा गई जो जीत न सिखा सकी
हार ने पीड़ा, दारिद्र्य, अभाव दिखाए, असहायों का शोषण, जीविका की भटकन,
मजलूमों के आंसू और धर्मियों का अपमान दिखाए।
समझ गया जीवन में हार कितनी आवश्यक है।
समय आ गया है
जिस काम को पूरा करने भेजा है
उस हेतु प्रतीक्षारत हूं
मैं मेरे लोगों के काम आऊं, उनके चेहरे पर मुस्कान लाऊं। उन्हें जीने का कौशल सिखाऊं,
उन्हें उनके हक दिलाऊं, उनके पथ के काटों को फूल बनाऊं। उन्हें तेरे करीब लाऊं।
शक्ति, भक्ति, मेधा दे।
शब्द प्रणाम!
त्राहिमाम!
