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सतीश शेखर श्रीवास्तव “परिमल”

Inspirational

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सतीश शेखर श्रीवास्तव “परिमल”

Inspirational

बीते काल की थकन

बीते काल की थकन

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तू चल नये आगाज

मिटा अपने तन-मन की

थकन; कर कथन अपने मन

क्षुधा लिप्सा को कर अंतर्मन

रे पंछी! न परवाज कर छोड़ अपने नीड़-चमन। 


इस सृष्टि का कहीं न अन्त 

तू विश्राम कर आना – जाना

पंखों को ले अपने समेट

थकन तू अपनी ले मिटा

रे तरंग! न सहला चल तू गुदगुदाते अपने पन्थ। 


दिखे सब में प्रीति नेह विश्वास 

तटनी की भूल भुला दे

वो कौन एक है जो

छोड़े अपने शीलपन 

रे पवन! न हहर चल तू मौन हो संग-संग। 


जग द्रोह से है भरा

मोह तू छोड़ जरा

ज्ञान-विज्ञान के लिये लड़ा

क्यूँ जीवन – प्राण से भिड़ा

प्रचंड प्रज्वलित रहा

खुद में आनंद प्रसन्न रहा

रे अंतस्! न विलासी तू तापस अंग को सुसुप्त कर। 


जीवन का सकल आसय 

न ढो अब भ्रमित भाव से

निष्कर्ष तू निकाल अभी

मन को न तोल हार-जीत से

अनगन न कर

महा-वृन्त तू बन

रे स्वरूप! न बिगाड़ तू संवार निरता का कर सृजन। 



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