अर्धांगिनी
अर्धांगिनी
यूँ आँख मूंद क्यूँ बैठे हो
कुछ मुख से अपने बोलो ना
मै अदक्ष सहभागिनी हूँ तेरी
तुम गाँठे ह्रदय की खोलो ना
ये रुष्ट प्रेम ना भाता मुझको
मुझ चंचल दिग्भ्रमित को पहचानो ना
माना तुम हो प्रगल्भ, विज्ञ, नीतिज्ञ स्वामी
इस अल्पज्ञ के हृदय की बात भी जानो ना
स्नेही, सुह्रदय तु हमदम है मेरा
हर पथ पर मै तेरी बाँट निहारूँ ना
विशाल अथाह हृदय के तुम हो मालिक
मै तो बस तेरे ह्रदय निलय की स्वामिनी हूँ ना
विरक्त हो गए तुम कुछ पल मुझसे
पर इस सौदामिनी को कुछ पल के लिए विचारों ना
धर्म, कर्म हर पथ के मेरे स्वामी
मै तेरी संग प्रयासरत वामांगनी हूँ ना
मेरे अंतिम श्वास के तुम हो मालिक
ये अनुगामिनी बस तेरी परछाई है ना
बाँध रखा है जिसको तुमने अपने मोह प्रेम में
देखो मै वही तेरी "अर्धांगिनी" हूँ ना।