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Kajal Nayak

Romance

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Kajal Nayak

Romance

अंतर्मन

अंतर्मन

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आज तुम सहसा टकरा गए,

यादों के उर भवन में

ज्यों कोई बिजली टकराती है

घनघोर, सुने गगन में

फिर से दहक उठी आज 

अश्रु की ज्वाला नयन में

विगत कुछ वर्षों की स्मृति

सहसा जल उठी अंतर्मन में

सुने हृदय में फिर कोलाहल उठा

ज्यों लघु वर्तिका भड़क गई हो तन-मन में

विगत दिवसों की मधुर सुधी

बड़ा रही है प्यास उमगी नयन में

उस चिर विरह का बढ़ने लगा ताप

ज्यों अमावस की रात्रि हो गई हो इस मन में

 


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