टूटा काँच
टूटा काँच
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टूटा कांच भी कभी जुड़ा है क़्या
अपने मन जैसा उसका मन कभी पढ़ा है क़्या
पढ़ ली चार किताबें तो खुद को बाजीगर समझ बैठे
अपने "मै" का तुमको भी ग़ुमान चढ़ा है क़्या
यूँ बार - बार कूचे में ना जाओ लोग पागल कहेंगे
तुम्हें भी कुछ दिनों से इश्क़ का खुमार चढ़ा है क़्या
उसकी खामोशी को तुम बेबसी समझ बैठे
कभी पास बैठ कर उसके लफ्जो को पढ़ा है क़्या
खैर छोड़ो ये हम नासमझ वालो की बातें है
कभी तुमने हमारे दिल-ओ-जज्बातों को पढ़ा है क़्या।