वो आज की नारी है
वो आज की नारी है
पत्थर की वो मूरत नहीं है,
ना ही किसी की कठपुतली है।
कई रूपों में समाहित है जो,
वो दुर्गा, लक्ष्मी, काली है।
ना ही वो अबला नारी है,
वो तो इस धरती की हरियाली है।
वो एक नारी है,
जी हाँ वो एक नारी है,
जो आज सब पर भारी है।
मत बोलो उसे तुम कोमल काया,
वो तो सृष्टि की पालनहारी है।
पर्वत उठाकर ज़िम्मेदारियों का,
वो खुद पर निर्भर रहने वाली है।
बनकर हर तरफ क्रांति की चिंगारी,
वो परिवर्तन करने वाली है,
जी हाँ वो एक नारी है,
जो आज सब पर भारी है।
प्रेम और ममता का खजाना लिए,
वो सबको अपने प्रेम में रंगने वाली है।
चलकर काँटों से भरे जीवनपथ पर,
फिर भी अपने हौसलों को बुलंद रखने वाली है।
हर दल-दल से बहार निकलकर,
वो नीरजा बनने वाली है।
जी हाँ वो एक नारी है,
जो आज सब पर भारी है।
संसार सृजन का दायित्व उस पर,
वो नवजीवन को धरती पर लाने वाली है।
धैर्य सहनशीलता का ताज़ पहनकर,
वो अपने हर कर्त्वय निभाने वाली है।
देकर हर रूप में अग्नि परीक्षा,
जो सीता, द्रोपदी कहलाने वाली है।
जी हाँ वो एक नारी है,
जो आज सब पर भारी है।
सदियों तक जो चलती रहे,
वो इस हवा सी बहने वाली है।
ब्रमाण्ड का अनूठा स्वरुप है नारी,
जो अपना इतिहास रचाने वाली है।
धरा सी जो विशाल फैली है,
वो रूप एक नारी है।
जी हाँ वो एक नारी है,
जो आज सब पर भारी है।