एक हाथ का ही फासला कि ख्वाब में ही छू ले... क्यों लगे कोसों की दूरी, ये मजबूरियां ही बताएंगी एक हाथ का ही फासला कि ख्वाब में ही छू ले... क्यों लगे कोसों की दूरी, ये मजबूरिया...
कई सारे किताबें लिखी गई है कई सारे किताबें लिखी गई है
टुकड़ों में बटेगी जिंदगी, रूह पर जो है, बनी एक कांच की हवेली...! टुकड़ों में बटेगी जिंदगी, रूह पर जो है, बनी एक कांच की हवेली...!
मज़ा आ जाए की ''काँच'' में देखे आदमी। मज़ा आ जाए की ''काँच'' में देखे आदमी।
हमरे बीच कांच नहीं है हमारे मध्य है, दर्पण। हमरे बीच कांच नहीं है हमारे मध्य है, दर्पण।
टूटने के बाद मैं कभी, जुड़ नहीं पाऊँगी। इन्हीं टुकड़ों में अंत तक, रह जाऊँगी। टूटने के बाद मैं कभी, जुड़ नहीं पाऊँगी। इन्हीं टुकड़ों में अंत तक, रह जाऊँगी।