STORYMIRROR

Twinkle Raghav

Tragedy

4  

Twinkle Raghav

Tragedy

दर्पण

दर्पण

1 min
246

हमरे बीच कांच नहीं है 

हमारे मध्य है, दर्पण। 

 

जो तुम कहना चाहते हो 

वो मुझे नहीं दीखता ,

जो मैं व्यक्त करती हूँ 

वो तुम नहीं देख पाते। 


इसे ही इसका - उसका दंभ समझकर 

एक दूसरे से रुष्ट होकर 

जलते - भुनते , 

जीवन के रास्तों पर 

एक दूसरे से मुँह फेरकर ,

बेवकूफों की तरह 

एक दिन , यूँ ही अचानक 

बिछड़ जाते हैं।


 


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy