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योगेश कुमार

Drama

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योगेश कुमार

Drama

योगी बस यूँ ही

योगी बस यूँ ही

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टुकड़ों में बटेगी जिंदगी, रूह पर जो है,

बनी एक कांच की हवेली !


गुप अंधेरे में ऐसे चिल्ला रही,

हुई सांसें मेरी जैसे विधवा नवेली !


आहत करती दीवारें जब,

टकरा कर आती,

दूर खण्डरों से बन,

कर्कश आवाज़ सहेली !


डोल रही कब्र के पास ही,

क़दमों की छाप,

परछाईं भी अकेली !


कभी छाँव कभी धूप ओझल,

आँखों से रूप वेदना,

बनी कुरूप व्यथा,

बनी पहेली !


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