बस यूँ ही
बस यूँ ही
भूत दहक से बर्फ सा पिघलता
पर बह नही पाता, बस कह नही पाता।।
गुनगुनाने को गीत लिखता
गला रुआंसा बना
गाने को लय नही पाता,बस कह नही पाता।।
रेत का महल ऐसे कैसे बन गया
जो ढह नही पाता, बस कह नही पाता।।
है वजह हँसने की अब करीब मेरे
खुश रह नही पाता, बस कह नही पाता।।
रात बहुत अकेली रहती दर्द की चीत्कार लिए
कर्कश आह सह नही पाता, बस कह नही पाता।।
