रात बहुत अकेली रहती दर्द की चीत्कार लिए कर्कश आह सह नही पाता, बस कह नही पाता।। रात बहुत अकेली रहती दर्द की चीत्कार लिए कर्कश आह सह नही पाता, बस कह नही पाता।।
अविराम भागती, चीत्कारती ज़िन्दगी मेंअपनी आजादी के मोल खरीदी हुई ये ख़ामोशी। अविराम भागती, चीत्कारती ज़िन्दगी मेंअपनी आजादी के मोल खरीदी हुई ये ख़ामोशी।
स्वर जो मिलकर गूंजते थे कभी... उनमें तकरार हुआ करते हैं, स्वर जो मिलकर गूंजते थे कभी... उनमें तकरार हुआ करते हैं,
मान लिया यही है जीवन,जो है सब एक दिन छिन जायेगा! मान लिया यही है जीवन,जो है सब एक दिन छिन जायेगा!
कब जिएंगे स्वतंत्र जीवन कब तक रहेंगे बेड़ियों में हम। कब जिएंगे स्वतंत्र जीवन कब तक रहेंगे बेड़ियों में हम।
मुझे आज भी याद है वो मंजर, जहाँ की जमीन थी बिल्कुल बंजर। मुझे आज भी याद है वो मंजर, जहाँ की जमीन थी बिल्कुल बंजर।