बेटी की चीत्कार
बेटी की चीत्कार
कब जिएंगे स्वतंत्र जीवन
कब तक रहेंगे बेड़ियों में हम।
क्यों! नहीं नूतन व्यवहार हो रहा
क्यों !सारा जगत चैन से सो रहा।
क्यों !बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा दे रहे।
जब बेटियों को सुरक्षा ना कोई दे रहा।
हिंदुस्तान में हर हिंदुस्तानी शर्मसार हो रहा
हर हिंदुस्तानी का हृदय क्यों मौन है।
बेटियों का हृदय अब क्षत-विक्षत हो रहा
बेटियों का हृदय खून के आंसू रो रहा।
धरा पर जब यह तांडव हो रहा
हर इंसान का लहू भी पानी हो रहा।
मौन धारण कब तक करोगे तुम
इस धरा पर कब तक रहोगे तुम।
संस्कृति सभ्यता कहां खो गई
अब तो संस्कृति भी मौन हो गई।
देख कर हिंदुस्तान की यह हालत
मानव हृदय क्यों न द्रवित हो रहा।
नारी जगत का यदि ,
सम्मान कर सकते नहीं।
तुम्हारा जीवन लेना भी,
धरा को कलुषित कर रहा।
देवियां पूजी जाती जहां,
वहां क्यों ! न नारी सम्मान हो रहा।
बेटी की चित्कार है यह,
चैन से जीने ना देगी।
हर दिन अंधियारा होगा,
रात को चांदनी ना होगी ।
समृद्ध देश को यदि बनाना,
व्यभिचार को मिटाओ तुम।
जो कलुषित करते हैं देश को,
उन का अभिमान मिटाओ तुम।
