चंद लम्हों के लिए
चंद लम्हों के लिए
माँ चन्द लम्हों के लिए
तुम्हारे आँगन में आकर।
मैं तुमको खोजती रही हर कोने में,
माँ मुझे हर कोने में सामान तो मिला
मगर तुम कहीं न मिली ।
मेरी अन्तर आत्मा सिसकती रही।
स्वयं का बोझ मैं ढोती रही
माँ तुम्हारे बिना कुछ अच्छा लगता नही
माँ तुम्हारे बिना इस आँगन में
आना अब सुहाता नहीं |
फिर भी मैं उस ठंडी हवा के झोंके में
तुम्हारे स्पर्श का एहसास पाती हूँ।
माँ तुम्हारे आँगन में आकर
मैं चंद लम्हों के लिए
खुद को भूल जाती हूँ.
खुद को भूल जाती है।