काश
काश
अवहेलना होती रही, नारी जगत की
कभी पुरुषों द्वारा ,कभी संपूर्ण जगत द्वारा
काश !ऐसा न होता ।
नारी से ही उपजती है, मानव मन की संवेदनाएं
उन्हीं के द्वारा आहत किया जाता रहा।
पग पग, हर पल
काश! ऐसा ना होता।
हर ह्रदय को गढ़ती है ,मन को भी पढती है।
निरक्षर होते हुए, साक्षर बनने का ज्ञान देती है
काश !नारी के स्वाभिमान को समझा जाता
काश !उन पन्नों को भी पलटा जाता
जो पीछे छूट गए
जीवन की उहापोह में
मन की इच्छाओं को छू न सके।
उन पन्नों के बाद
एक पन्ने का लिखा जाना कितना मुश्किल है।
काश! कोई समझ पाता
काश !कोई समझ पाता।