जन रामार्चन
जन रामार्चन
कहने लगी पार्वती, महादेव महान हो
मन की इच्छा पूरी करो सर्वशक्तिमान हो।
मन में उठे प्रश्नों का ,तुम समाधान करो,
राम कथा की गंगा में, मम भाव प्राण हो।
श्रद्धा भाव से पार्वती ,शिव को मनाने लगी
अतृप्त ह्रदय से जब, भाव जगाने लगी।
भागीरथी के गीत गा, शुद्ध भाव लाने लगी
देवनदी के गीतों से , भाव जगाने लगी।
वाणी द्वारा कल्याणी भी,धीर जब खोने लगी
रामलीला वह जाने ,आतुर होने लगी।
शिव अपने भक्तों पर ,रूष्ट कहां रहते हैं
भावों से ही धारा बहे,शिव प्रवाह करें।
श्रोता दास बनते है ज्ञान गूढ़ सुनते हैं
रामकथा की गंगा को शिव यूं कहते हैं।
वंदन और क्रंदन ,ले गुरू पद जायेगा
ह्रदय प्रेमभाव का ,व्यवहार हो जाएगा।
राम ने भी दुख झेले समर्पण का तार रहे
सीताराम से हमेशा सार मिल जाएगा।
जीवन था कांटो भरा ,भाई सदा साथ रहा
समर्पण के आदर्श से ,प्यार मिल जाएगा
।
तात मात के वचनों की, जब आज्ञा हो जाएगा
वैरागी मन हो जब, शोर थम जाएगा।
मर्यादा से कार्य करे ,हो लोकहित कामना
निज तम सदा हरे, क्रोध मिट जाएगा।
परहित का भाव हो, समर्पण की चाह हो
सीता जैसे भाव कहे, पथ मिल जाएगा।
झूठे बेरो का भी जब, मान ह्रदय आएगा
सच! तभी से प्रेम का, संचार हो जाएगा।
धर्म का संचार होगा,हर जीव मित्र होगा,
भेद हटा निश्चय ही , उपहार मिल जाएगा।
तात मात बंधु भ्रात, का जब सम्मान होगा
सत्य! तुम्हारा ह्रदय,विशाल हो जाएगा।
मन में विचार कर, प्रभु का भी ध्यान करें
मन का विकार सब,दुर हो जाएगा ।
मिले शुद्ध तन मन , मंजूल शरीर कहे
धन्य हो !दाता का जब,आभार हो जाएगा।
जब सभी जन मन ,सीताराम गुण गाएगा
सत्य! मन धरा पर,अवतार हो जाएगा।
जब सभी जन मन,धैर्य से गुण गाएगा,
"ऋतु" कहे सभी जन अमृत रस पाएगा।