आज प्रेम धारा बही*
आज प्रेम धारा बही*
बातों से आपने, मेरे दिल को लुभा लिया,
नहीं जानते थे फिर भी, दिल में बसा लिया।
कोई अनजान कहां रहा,
जब आपने हमसे दिल लगा लिया।
बातों का सिलसिला जारी रहा,
ओर आपने हमें हर राज बता दिया ।
दुरि भी नजदीकियां बनती चली गई,
बातें बहुत सी मन को तिरोहित करती रही।
ऐसा लगा....
इस सफर में कोई हमसफर हमें मिला,
मन की बातें वही थी जो मन को भिगोती रही।
कुछ सिलसिला ऐसा बना,
कारवां थमा नहीं,
कभी राम का प्रताप सुना तो,
कभी गुरु चरणों में शीश झुका।
कभी दर्शन भी चरणों के हुए,
तो कभी सांवरा निकट मिला।
कभी भावों की सरिता बही ,
तो कभी अमृत पान भी किया।
एक "रेखा" ऐसी मिली ,
जो डोर मधुर बन गई।
दूरियों भी न रही जब दिल की बातें मिली,
ऐसा लगा आज अचानक.....
मन की हर कली खिली।
ओर उस *रेखा* से भावों की हर पंक्ति सजी,
आज प्रेम की धारा......
अविरल बही,
अविरल बही।।