बस यूँ ही
बस यूँ ही
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छोटी नहीं वो बात पूरी बताएंगी,
टूटे कांच की व्यथा दूरियां ही बताएंगी।
एक हाथ का ही फासला कि ख्वाब में ही छू ले
क्यों लगे कोसों की दूरी
ये मजबूरियां ही बताएंगी,
टूटे कांच की व्यथा दूरियां ही बताएंगी।
ख्याली से ख्याल रख कर
अधजगा तन थक कर
कब तक रात जगी रहे
तन्हाइयों की दस्तूरियाँ बताएंगी,
टूटे कांच की व्यथा दूरियां ही बताएंगी।
कभी पत्थर से टूट गए
फिर रेत बन बिखर गए
कितना कष्ट झेल गए ये दुश्वारियां बताएंगी,
टूटे कांच की व्यथा दूरियां ही बताएंगी।

