अंधकार से मुक्ति दो
अंधकार से मुक्ति दो
अंधकार की शीत में प्रकाश का कंबल दो,
छत्र कवच रश्मि,आत्म-बल की अविचल वो मधुर आंचल दो।
अंतर मिटा दो जन्म का,काल का, मृत्यु का,
इस एक कण से साक्षात्कार हो उस परम कण का।
उस परम परिपूर्ण परमानंद का अभिवादन,
फ़िर भय क्यों, विषाद क्या, कैसी रुदन है, कैसा क्रंदन।
आह ! आह ! अचानक इस मधुर संगीत स्फुटन,
नयन नहीं ,पर दृश्यांकन,कर्ण नहीं ,पर गुंजन।
क्यों बंधा आकर्षण में,आकृष्ट क्यों लावण्य पर,
मोहित कैसा, सम्मोहन कैसा, मोह क्यों नश्वर पर।
दिख रहा है स्वच्छ धवन उज्जवल हिमश्वेत सा प्रकाश,
ओज सविता-समतापी और शीतल रश्मि चंद्रप्रकाश।
आह्लादित कर रही है अप्रत्यक्ष ह्रदय को, सर्वोत्कृष्ट सुखानुभूति,
सम्मिलित संपूर्ण भौतिक सुखों से श्रेष्ठ है ये अनुभूति।
फ़िर भय क्यों दुश्चिंता कैसी उस परम सत्य की,
पात्रता है मुझमें उस सत्य को पाने की,वो सुपात्र हूँ मैं।
उस अमूल्य निधि को प्राप्त करने की विधि दो,
हे ईश्वर मुझे मुक्ति दो,इस हावी अंधकार से मुक्ति दो।
