मेरी अभिलाषा
मेरी अभिलाषा
बिन पंख के उड़ जाऊँ नभ में
मेरी ये अभिलाषा है
ज्ञान का दीपक जला के जग में
तम को मिटाने की लालसा है।।
स्रोत बनूँ मैं ज्ञान का ऐसा
जो प्रेम-मैत्रीभाव का सागर है
सहयोग, मदद की जगा दूँ भावना
हर गुण-विषयों का भ्राता है।।
भेदभाव की बात कभी न
उच्च, सरल जीवन का निर्माता है
हर धर्म के हो निवासी
मन-हृदय में जो रहता है।।
