परिणीता सा अस्तित्व
परिणीता सा अस्तित्व
श्रृंगार रस का जब हुआ आविर्भाव,
मेरे मरुस्थल की शुष्क अवनी पर,
आरुषि सी आत्मिक संवेदनाओं के स्पर्श से,
एक अज्ञेय बंधन से जोड़ता,
अज्ञातवास के दरीचे पर दस्तक देता,
चिन्मय हृदय के समर्पित कोनों में,
प्रेम रस को प्रवाहित करता,
अहं की दीवारों से टकराकर,
अविरल सा बहता,
भावों में मुदिता का स्पंदन करता,
उर में उथल पुथल सी कंपन करता,
प्रेम का स्वरुप प्रकृति में निहारता,
इंदुकला के आगमन पर,
आख़िरी सितारे संग,
अपने शब्दों को उसके ,
एहसासों की डोर में पिरोकर,
समेटती रहती उसका मौन आलिंगन,
मेरे अस्तित्व का एक हिस्सा
सम्पूर्ण और तृप्त हो जाता,
मुझे आमोदिनी परिणीता सी
उसके नेह की स्याही में सजाकर।

