मुस्कुराती जिंदगी
मुस्कुराती जिंदगी
जिंदगी निकल जाएगी
हाथ मलते रह जायेगें
नोट के बंडल गिनते रह जायेगें
फिर कहोगे वक्त निकल गया
बहुत कुछ पीछे छूट गया
न वो शाम मिलेगी
अपनेपन की घाम मिलेगी
न इतवार न गीतों की रंगोली
न पहले सी रिश्तों की झोली
न उल्लास का पर्व न उत्सव
न पारिवारिक महोत्सव
बदलती किस्मत तो होगी
शायद लकीरें भी होगी
पर सांसें वैसी न होगीं
जिंदादिली से जीने के लिये
वक्त रहते लम्हों को थाम लो
हर पल को पकड़ मुट्ठी में
महसूस कर लो जीवन की इकाई को
दीप जलाकर रौशनी से
मन के सूनेपन को
प्रज्जवलित कर लो
लौ इच्छाओं की
तम दूर भगाकर
आंगन आंगन
देखो फिर सांसों को
हर मुस्कुराहट पर
मोहर लगाते हुए।
