आत्मिक अनुभूति
आत्मिक अनुभूति
जीवन के उदास पन्नें पर नाम उकेर रही थी
भीतर घेरे तूफ़ान का रुख मोड़ रहा थी
दीप अंधकार में प्रज्जवलित कर
टूटे मन को जोड़ रही थी
शिथिल शरीर न चल रहा था
गंतव्य की ओर न बढ़ रहा था
रास्ते में पाषाण टुकड़ा अवरोध बन खड़ा था
उठाया तराशकर आराध्य की मूर्ति बनाया
प्राण प्रतिष्ठा कर मंदिर में सजाया
न जाने क्लांत तन मन में अचंभित नव ऊर्जा कहां से आयी
शरीर के समांतर कौन सी शक्ति चलने लगी
गहन विचार किया
आराध्य को शांत स्थिर चित अर्पित किया
मूक थी मौन थी
महाशून्य में स्वयं हो गयी समाहित
आत्मतत्व परमतत्व में विलीन
अनहाद नाद सुन लिया
दिव्य है आलौकिक है
परम ब्रह्म ओंकार है
ज्योति भीतर परम आनंदित
आत्मा में लीन
आभास हुआ एक सिक्के के सामांतर पहलूओं का
दैहिक और आत्मिक मनोदशाओं का
जहां शिथिल शरीर शय्या पाकर प्रफुल्लित था
वहीं मैं आत्मिक अनुभूति में अपार आनंदित।
