जाग मुसाफिर
जाग मुसाफिर
अरे मुसाफिर क्यों ठहरा तू,
चलता चल उस राह में।
मंजिल तुझको मिल जाएगी,
ना रह तू भटकाव मैं।।
भटके ठहरे लोग मोह में,
तू आजा स्वभाव में।
जीव ईश से मिलना चाहे,
अब चल तू उस राह में।।
स्वर्ण जंजीरों से तू बंधकर,
बहता है मझधार में।
कंचन और कामिनी ने भी,
रोका है मझधार में।।
उस जग की तू खबर ही भूला,
इस जग की परवाह मैं।
जाग मुसाफिर चल रस्ते पर,
ना बह तू मझधार में।।
पर्दा हटा तू आंख अपन से,
अंतर आंख उघार ले।
साफ राह तुझे दिख जाएगी,
अपनी मंजिल पाही ले।।
